चुनावी दंगल की महिला खिलाड़ी

उत्तर प्रदेश राजनीति के बड़े खिलाड़ियों में शामिल एक दल, बहुजन समाजवादी दल भी है, जिसने उत्तरप्रदेश को पहली दलित महिला मुख्यमंत्री दी। आइए एक नजर डालते हैं जाति के आधार पर राजनीति करने वाली इस पार्टी के ऐतिहासिक सफर पर।
यह बहुजन समाज पार्टी इंडिया का पार्टी चिन्ह है; स्रोत: विकिपीडिया कॉमन्स

यह बहुजन समाज पार्टी इंडिया का पार्टी चिन्ह है; स्रोत: विकिपीडिया कॉमन्स

बहुजन, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक शामिल हैं, को समाज में और राजनीति में उनका स्थान दिलाने के लिए एक समाजसुधारक कांशीराम साहब ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना की और दलित वोटों को इकठ्ठा करना शुरू किया।

इस पार्टी ने पहला चुनाव छत्तीसगढ़ में लड़ा लेकिन इस पार्टी को असली सफलता उत्तर प्रदेश में मिली। काशीराम साहिब ने तर्क दिया कि दलितों को अन्य दलों के साथ काम करके अपनी विचारधारा से समझौता करने के बजाय अपने समाज के विकास को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक रूप से काम करना चाहिए।

उनकी विचारधारा के कारण समाज का एक बड़ा वर्ग उनकी ओर आकर्षित होने लगा, लेकिन भारत की जाति व्यवस्था इतनी सरल नहीं थी जितनी दिखती है। समाज में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के बीच भी विभाजन मौजूद था।

कांशीराम साहब उस विभाजन को पाटने का काम करते रहे, लेकिन तबीयत खराब होने के कारण उनके लिए उत्तराधिकारी चुनना जरूरी हो गया और उन्होंने यह जिम्मेदारी मायावती को दे दी।

मायावती एक पढ़ी-लिखी दलित महिला थीं। वह जल्द ही राजनीति में एक जाना-पहचाना चेहरा बन गईं क्योंकि उन्हें राजनीति के सारे दांव पेच आते थे। इसी वजह से जो मुकाम कभी काशीराम हासिल नहीं कर पाए वह उन्होंने कर दिखाया। 1995 में उत्तरप्रदेश के चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला तब उन्होंने समाजवादी दल के साथ गठबंधन किया और उत्तरप्रदेश राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।

यह भारत के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाली पहली दलित महिला थीं। मायावती बाद में चार बार मुख्यमंत्री बनीं। कई लोगों के लिए एक दलित महिला प्रतीक, उनके मजबूत बलात्कार विरोधी कानून और कुशल शासन ने उन्हें लोगों के बीच एक सम्मानित व्यक्ति बना दिया। यह बताया गया है कि उनके कार्यकाल के दौरान, यूपी ने बहुत कम दंगे, सबसे कम भ्रष्टाचार और बलात्कार के मामले दर्ज किए। फिर उन्होंने अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए बलुआ पत्थर के पार्कों में अपनी और कांशीराम की विशाल मूर्तियां बनवाई, जिन्हें सुर्खिया बनते समय नहीं लगा।

हालांकि, सब कुछ उतना अच्छा नहीं था जितना लग रहा था। आय से अधिक संपत्ति, ताज कॉरिडोर विवाद और आचार संहिता के उल्लंघन के आरोपों के साथ, उनके राजनीतिक जीवन के बाद के वर्षों के दौरान विवादों ने उन्हें घेरना शुरू कर दिया। उनकी छवि पर सबसे बड़ा दाग उनके द्वारा बनवाई गई मूर्तियां बनी। जनता का तर्क था कि उन्होंने करदाताओं का पैसा बर्बाद किया है। इसके अलावा वे वर्ल्ड बैंक फंड की अव्यवस्था को लेकर भी आलोचनाओं का शिकार हुई थीं।

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