कुछ लोगो का नाम उनके काम से होता है ... मेरा बदनाम होकर हुआ है
वो एक दिन अपने घर में पंखें से झूलती हुई मिली। ना कोई चिठ्ठी, ना मैसेज और ना ख़बर। यह विश्वास करना मुश्किल था की भारतीय फिल्मों की सुपरस्टार सिल्क ने आत्महत्या कर ली है। क्यों, किस वजह से, किसके लिए कोई नहीं जानता।
सिल्क स्मिता, यूँ तो यह नाम हमेशा ही सुर्खियों में रहता था लेकिन 23 सितम्बर 1996 को हालात अलग थे। वो अपने द्वारा निभाए गए किरदारों के लिए या अपने निजी रिश्तों की वजह से ख़बरों में नहीं थी, बल्कि वो तो इसलिए सुर्खियों में थी क्यूंकि उस लड़की ने जिसने ज़िन्दगी की हर लड़ाई अकेले लड़ी, वो जिसने कभी हार नहीं मानी, वो जिसने अपने दम पर वो सब हासिल किया जो लाखों के लिए सपना था उसने आत्महत्या कर ली।
वो अपने घर में पंखें से झूलती हुई मिली। उसने खुद को फाँसी लगाई थी। मेडिकल रिपोर्ट तो यह कहती है की वह उस दिन हद से ज़्यादा नशे में थी और नशे की ही हालत में उसने खुद को फाँसी लगा ली लेकिन उन लोगों की मौत हमेशा एक राज़ रहती है जो एक समय पर वक़्त को बदलने की क्षमता रखते थे लेकिन हालातों से हार गए।
इस दृष्टि से सोचा जाए तो हालात कभी भी उनके पक्ष में नहीं थे, न ही तब थे जब उन्हें गरीबी की वजह से अपनी पढ़ाई चौथी कक्षा में ही छोड़नी पड़ी, न ही तब थे जब 14 साल की उम्र में उसकी शादी कर दी गई, न ही तब थे जब उसका पति उसे मारता पीटता था और ज़िन्दगी नर्क से भी बदत्तर बन चुकी थी, न ही तब थे जब वह अपने पति के घर से भाग कर चेन्नई आ गई, हालात तो तब कहीं गुना ज़्यादा ख़राब थे लेकिन शायद विजयलक्ष्मी (उनका असली नाम) सिल्क स्मिता से ज़्यादा मज़बूत थी क्यूंकि उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं था और पाने के लिए पूरा जहाँ। पर सिल्क ने तो अपना सब कुछ खो दिया, अपनी खुशियां, प्यार, सुख, चैन, नाम, पैसा सब कुछ।
बड़ी-बड़ी आंखों में बड़े सपने लेकर चेन्नई आने के बाद विजयलक्ष्मी ने काम की तलाश शुरू की ताकि उन्हें इस भीड़-भाड़ वाले शहर में रहने का जरिया मिल जाए, लेकिन साउथ की फिल्मों की चकाचौंध को देखकर उन्होंने हीरोइन बनने का फैसला कर लिया। फिल्मों में मौका मिलना जितना मुश्किल आज है उतना ही मुश्किल तब भी था।
रोज़ काम ढूंढ़ने के बाद उन्हें बड़ी मुश्किलों से फिल्मों में कुछ रोल मिलने लगे लेकिन वो ऐसे रोल होते थे जिनका फिल्मों में होना या होना एक ही बराबर था। विजयलक्ष्मी के इरादे इतने बुलंद थे की उसने कभी हार नहीं मानी। आखिरकार उसकी ज़िन्दगी में एक ऐसा दिन आया जिसके बाद सब कुछ बदल गया। तमिल फिल्मों के मशहूर निर्देशक वीनू चक्रवर्ती की नज़र उन पर पड़ी।
विजयलक्ष्मी से सिल्क स्मिता बनने का सफर वीनू चक्रवर्ती और उनकी पत्नी के संरक्षण में ही शुरू हुआ था। उन्हें केवल काम चाहिए था, वो फिल्मों का एक बड़ा नाम बनना चाहती थी और पैसा कमाना चाहती थी। इस सफर में उन्हें मिले किरदारों को निभाने में वह कभी नहीं हिचकीं लेकिन अक्सर वह चरित्र नकारात्मक, यौन अपील करने वाली महिला, पुरुषों को बहकाने वाली महिला के ही होते थे जल्द ही वह इन किरदारों में टाइपकास्ट कर दी गई। पर्दे पर उनके किरदार को उनकी असल ज़िन्दगी की छवि बनने में ज़्यादा समय नहीं लगा। लोग उसके बारे में बुरा लिखने लगे, बुरा कहने लगे, बुरा सोचने लगे। उन्हें बी ग्रेड फिल्मों की एक्टर्स कह कर उनका उपहास उड़ाया जाने लगा।
सबने यह अनदेखा कर दिया की उन्होंने रजनीकांत, चिरंजीवी, कमल हासन जैसे दक्षिण भारतीय फिल्मों के मेगा स्टार और मिथुन, जितेंद्र जैसे बॉलीवुड सुपरस्टार सहित कई ए ग्रेड फिल्मों में बड़े अभिनेताओं के साथ भी काम किया।
उनका केवल एक गाना किसी भी फिल्म को हिट बना सकता था। किसी भी फिल्म को हिट बनाने के लिए सिल्क का केवल नाम ही काफ़ी था यही वजह थी की उन्होंने केवल 4 सालों में 200 से अधिक फ़िल्मों में काम किया।
इन सालों में जहां एक तरफ उनका करियर ऊंचाइयों को छू रहा था वहीं दूसरी ओर उनके निजी जीवन में दुःख और परेशानियों के अलावा कुछ नहीं था। उनके दोस्त ज़्यादा थे नहीं और प्यार के मामले में तो नसीब दोस्ती से भी ज़्यादा ख़राब थी। एक के बाद एक धोखा उन्हें अंदर से खोखला करता जा रहा था। फ़िल्म उद्योग की इस भीड़ में वह बिलकुल अकेली पड़ती जा रही थी।
धीरे-धीरे वह सब कुछ उनसे दूर होता जा रहा था जो उन्होंने इतने सालों में कमाया था। कुछ चुनिंदा दोस्त थे उनके जिनमें अनुराधा और रविचंद्रन ख़ास थे। जिस दिन उन्होंने आत्महत्या की उससे एक दिन पहले उन्होंने दोनों को फ़ोन भी किया था लेकिन रविचंद्रन उस समय अपनी एक फ़िल्म की शूटिंग में व्यस्त थे इसलिए उनका फ़ोन उठा नहीं पाए और अनुराधा जब उनसे मिलने पहुँची तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
शायद उन्होंने इतना अकेलापन और तिरस्कार इसलिए झेलना पड़ा क्यूंकि वो एक छोटे शहर से आई आम लड़की थी जो हर हालत में कामयाब होना चाहती थी, पर क्या अगर उनकी जगह भारतीय फिल्म उद्योग से जुड़े परिवार की कोई बेटी होती तब भी उन्हें यह तिरस्कार झेलना पड़ता? शायद नहीं तब तो वह उनका काम होता और उस रोल को उन्होंने कितनी बेहतरीन तरीके से निभाया इसके लिए उनकी तारीफ़ होती और ऐसे किरदार उनकी छवि तो कभी नहीं बनते जैसा सिल्क के साथ हुआ। सिल्क पर कई फ़िल्में बनी और उनकी कहानी कई बार कही गई लेकिन आज तक उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जो एक अदाकारा की भाँति ना सही पर एक इंसान के तौर पर उन्हें मिलना चाहिए था।
आज उनकी मौत को इतने साल बीत चुके है लेकिन उनकी मौत आज भी एक राज़ बनी हुई है। पर एक बार अपने दिल से पूछिए क्या हम सभी लोग उनके दोषी नहीं है जिसने एक छोटे से गांव से आई लड़की के बारे में ऐसी बातें लिखी और कहीं जैसे की वो कोई बाज़ारू औरत हो। 35 साल की उम्र में आत्महत्या करने का फैसला कोई इंसान तब नहीं करता जब उसके पास कुछ ना बचा हो बल्कि तब करता जब कुछ ठीक होने की आस भी ना बची हो। उस आस को तोड़ने के दोषी वो हज़ारों लोग थे जिन्होंने उसका साथ उसकी कामयाबी में तो दिया लेकिन मुश्किलों में नहीं। जो उसको नीचे गिराने के लिए खुद बेहद नीचे गिर गए। जिन्होंने केवल उसका रूप देखा अदाकारी नहीं। ना केवल फिल्मों में बल्कि हमारे आस पास भी कई सिल्क है जो अपनी ज़िन्दगी अपनी मर्ज़ी से जीना चाहती है, जो ना केवल बड़े सपने देखने की हिम्मत रखती है बल्कि उन्हें पूरा करने की भी। सिल्क को तो नहीं बचाया जा सका लेकिन उनके जैसे लोगों को बचाया जा सकता है। हमें उनके लिए कुछ करने की ज़रूरत नहीं है बस ज़रुरत है तो अपनी सोच को बड़ा बनाने की ताकि वह सिल्क की तरह लोगों की मानसिकता का शिकार ना बने।