गोल्डन गर्ल ऑफ इंडिया

मेहनती, साहसी, बहादुर, उनकी प्रशंसा में जितना कहा जाए कम है। दीपा कर्माकर विश्व की उन चुनिंदा महिलाओं में से एक है जिन्होंने सफलतापूर्वक प्रोडुनोवा वॉल्ट का प्रदर्शन किया है, जिसे "मौत की तिजोरी" के रूप में भी जाना जाता है।
भारत के राष्ट्रपति, प्रणब मुखर्जी दीपा कर्माकर को पद्म श्री पुरस्कार प्रदान करते हुए (2017); स्त्रोत : राष्ट्रपति सचिवालय

भारत के राष्ट्रपति, प्रणब मुखर्जी दीपा कर्माकर को पद्म श्री पुरस्कार प्रदान करते हुए (2017); स्त्रोत : राष्ट्रपति सचिवालय

दुनिया की यह परंपरा है कि पहला हमेशा इतिहास बनाता है, उदाहरण के लिए, आज मोबाइल फोन ने कितनी भी प्रगति कर ली हो, लेकिन जब भी मोबाइल फोन का इतिहास लिखा जाता है सबसे ऊपर उस व्यक्ति का नाम लिखा जाता है जिसने सबसे पहले फ़ोन बनाने की कोशिश की थी। इसी तरह जब ओलंपिक्स में भारतीय जिम्नास्टिक का इतिहास लिखा जाएगा तो सबसे ऊपर दीपा कर्माकर का नाम लिखा होगा।

2016 रियो ग्रीष्मकालीन ओलंपिक जिमनास्ट के क्षेत्र में भारत के लिए कई सुनहरे क्षण लेकर आया। 52 साल के प्रयास के बाद पहली बार कोई भारतीय जिम्नास्ट ओलंपिक में पहुंचने में सफल रहा । सोने पर सुहागा तो यह था कि उन्होंने ना केवल भाग लिया बल्कि वह फाइनल तक पहुंची।

भारतीय जिन जिम्नास्टिक को सर्कस से जोड़ते थे, उन्होंने पल भर में उनका नजरिया बदल दिया। भारत के हर न्यूज चैनल में दीपा की खबरें थीं और हर अखबार के पहले पन्ने पर उनकी फोटो छपी थी। एक दिन पहले दीपा, जिनका नाम किसी को पता भी नहीं था, रातों-रात सुपरस्टार बन गईं थी।

यह शायद पहली बार था जब देश को जिम्नास्टिक से जुड़े खतरों के बारे में पता चला। उस दिन भारत का हर व्यक्ति जितनी बेसब्री से उनके प्रदर्शन का इंतेज़ार कर रहा था, उससे कही अधिक खौफ ज़दा था क्योंकि दीपा जिमनास्टिक में सबसे खतरनाक चालों में से एक, प्रोडुनोवा वॉल्ट का प्रदर्शन करने वाली थी। इस चाल को करते समय एक छोटी सी गलती भी व्यक्ति को जीवन भर के लिए अपंग बना सकती है और उसकी जान भी ले सकती है।

कुछ समय पहले भारत में हर वो शख्स जो उनसे मेडल की उम्मीद कर रहा था, उनकी सलामती की दुआ करने लगा। दीपा ने इस खतरनाक चाल को खेलकर जब सफलतापूर्वक लैंडिंग कर ली, तब कहीं जाकर भारतीयों ने राहत की सांस ली। वह उस मैच में केवल कुछ अंकों के अंतर से चौथे स्थान पर आई थी लेकिन यह उसकी हार नहीं बल्कि जीत थी क्योंकि उसने उस दिन पदक भले ही न जीता हो लेकिन सभी का दिल ज़रूर जीत लिया था।

यह अंत नहीं बल्कि उनके करियर की शुरुआत थी। इसके बाद उन्होंने कई इतिहास रचे। 2018 में उसने मेर्सिन में FIG कलात्मक जिमनास्टिक्स वर्ल्ड चैलेंज कप में स्वर्ण पदक जीता। 2017 में, उनका नाम फोर्ब्स की 30 साल से कम उम्र के एशिया के सुपर अचीवर्स की सूची में भी शामिल था।

उनके प्रयासों के लिए उन्हें 2015 में अर्जुन अवार्ड, 2016 में राजीव गाँधी खेल रतन अवार्ड, 2017 में पदम् श्री से नवाज़ा गया। वह उन खुसनसीब शिष्यों में से एक है जिनके कारण उनके गुरु को भी द्रोणाचार्य अवार्ड मिला।

उनके और गुरु के लिए यह सफर आसान नहीं रहा था। उन्होंने काफी मुश्किलों से सामना किया। उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा की "मैं जिस जगह से आई हूं वहां संसाधनों की कमी है। शुरुआत में जिमनास्टिक को गंभीरता से नहीं लिया जाता था। हर जगह से तरह-तरह की बातें सुनने को मिलती थी, लेकिन मन में एक जुनून था कि आलोचकों को सफलता से ही चुप कराया जा सकता है।"

लोग समानता की कितनी भी बात कर लें, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भी महिलाओं को कुछ भी हासिल करने के लिए किसी पुरुष से ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। समाज में व्याप्त विभिन्न भ्रांतियों के कारण चुनौती बहुत बड़ी है। लेकिन कड़ी मेहनत और क्षमता के बल पर दीपा करमाकर जैसी महिलाओं में पिछड़े समाज को प्रगतिशील बनाने की क्षमता है। ये उन्होंने दिखाया भी है आज जिम्नास्टिक को लोग सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और देश में बड़ी संख्या में लोग जिम्नास्टिक से जुड़ रहे हैं, इसका श्रेय उन्हें ही जाता है।

लोगों के नजरिए में आया यह बदलाव किसी भी सम्मान और मेडल से बढ़कर है। वह भारत का एक अनमोल रत्न है जिनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।

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