तेलंगाना का सुपर हीरो
कोठापल्ली जयशंकर एक योद्धा थे जिन्होंने तेलंगाना के लोगों के हक़ के लिए तब तक लड़ाई की जब तक वह जीत नहीं गए। इस लड़ाई के अर्जुन भी वह थे और कृष्ण भी।
कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता, ज़रा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो- अगर यह कहावत किसी व्यक्ति पर पूरी तरह फिट बैठती है, तो वह दक्षिण भारत के कोठापल्ली जयशंकर हैं । जिनके प्रयासों से तेलंगाना की जनता के साथ कई दशकों से हो रहे अन्याय का अंत हुआ।
उनका जन्म (6 अगस्त 1934) परिवर्तन की शुरुआत और तेलंगाना के साथ हो रहे पक्षपात का अंत था। ऐसा कहा जाता है कि पूत के पाँव पालने में दिख जाते हैं। शायद यह सच भी है क्यूंकि कोठापल्ली जयशंकर, जिन्हें आमतौर पर प्रोफेसर जयशंकर के नाम से जाना जाता है, आम बच्चों से बिल्कुल अलग थे। वह बाल अवस्था से सही के लिए आवाज़ उठाना जानते थे। हैदराबाद में उस समय निज़ाम का शासन था। सभी स्कूलों के छात्रों के लिए निज़ाम की प्रशंसा में गीत गाना अनिवार्य था लेकिन जयशंकर दूसरों की तरह नहीं थे। जब उन्हें गीत गाने को कहा गया तो उन्होंने उस गीत के स्थान पर वन्दे मातरम गाया, जिसे सुन कर सब हैरान रह गए।
तेलंगाना उस समय आंध्र प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था लेकिन नदी के पानी के बंटवारे को लेकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच तनाव था। जयशंकर बचपन से ही इन सब बातों से वाकिफ थे और अपने लोगों की दशा सुधारने के इच्छुक थे।
प्रोफेसर जयशंकर उच्च शिक्षित व्यक्ति थे। उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी की। उन्होंने तेलंगाना के लोगों को जागरूक करने के लिए अपनी शिक्षा और ज्ञान का इस्तेमाल किया।
1952 में, जब वह एक छात्र नेता थे, उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया। 1962 में वह तेलंगाना को एक अलग राज्य बनाने के उद्देश्य से एक अभियान का हिस्सा बने। 1969 तक उनका अभियान एक जन आंदोलन बन गया।
'गैर मुल्की गो बैक, इडली सांभर गो बैक' - 1952 के आंदोलन के दौरान प्रयोग किए गए नारे का हिंदी रूपांतरण
अपनी मृत्यु के समय वे तेलंगाना अध्ययन केंद्र के प्रमुख थे जो तेलंगाना की समस्याओं से संबंधित अनुसंधान और प्रकाशनों में लगा हुआ है। उनकी मृत्यु तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के लोगों के लिए एक बड़ा झटका थी क्योंकि वह इसकी प्रेरक शक्ति थे।
एति किना, मति किना मनोडे अडाला अर्थात, चिता जलाने के लिए या खेती के लिए, हमारे लोग होने चाहिए। - प्रोफेसर जयशंकर
उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले ही तेलंगाना को एक अलग राज्य बनाने की पृष्ठभूमि तैयार कर ली थी, इसलिए उनकी मृत्यु के 3 साल बाद ही सरकार ने तेलंगाना को एक अलग राज्य का दर्जा दिया। वह एक महान व्यक्ति थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन अपने देशवासियों के लिए समर्पित कर दिया और इस अभियान में कोई बाधा ना आ जाए इसलिए कभी शादी नहीं की। उनकी मृत्यु के समय उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे लोगों की भीड़ उनके जीवन के संघर्षों और कार्यों की गाथा सुनाती है।