राज - नाम तो सुना होगा
प्रेम कहानियाँ वही अमर होती है जिनके रास्ते में रुकावटें बहुत होती है और नेता वही सफल होते है जिनके विवाद बहुत होते है। राज बब्बर के जीवन में यह दोनों ही घटनाएं हुई।
राज बब्बर नाम सुनते ही सबके ज़हन में उनकी एक छवि बन जाती है। जो या तो एक अभिनेता की होती है या नेता की। लेकिन बहुत कम लोग उनके निजी जीवन के बारे में जानते है। उनकी उस प्रेम कहानी के बारे में जिसनें उनके जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ा।
राज नाम बॉलीवुड में बहुत लोकप्रिय है लेकिन जब असली राज ने फ़िल्म इंडस्ट्री में कदम रखे थे उसे कोई नहीं जानता था। शहर था तो सपनों का पर वो पूरे होंगे या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं थी। लेकिन जो कोशिश करे बिना ही हार तो वह नहीं मानने वाले थे।
उन्होंने फ़िल्में तो बहुत की लेकिन जिस फ़िल्म ने उनकी कला को असली पहचान दी वह फ़िल्म थी 'इंसाफ़ का तराज़ू'। इस फ़िल्म के बाद उन्होंने एक अभिनेता के रूप में पहचाना जाना लगा। एक और फ़िल्म थी जिसनें उनकी ज़िंदगी बदल दी। फ़िल्म का नाम था 'आज की आवाज़'।
यह फ़िल्म ख़ास इसलिए थी क्योंकि इसी फ़िल्म में उनकी मुलाक़ात स्मिता पाटिल से। फ़िल्म की शूटिंग के दौरान दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे। पर दोनों की प्रेम कहानी थोड़ी अलग थी क्योंकि प्रेम कहानी का हीरो पहले से ही शादीशुदा था। बीवी का नाम था नादिरा। यहाँ तक की उनके दो बच्चे भी थे।
अगर मिर्ज़ा गालिब के शब्दों का सहारा ले तो उनका एक शेर इस स्तिथि पर बिल्कुल सही बैठता है "इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब', कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।" राज और स्मिता का भी कुछ यही हाल था। दोनों एक दूसरे से इतना प्यार करने लगे की शादी करने का मन बना लिया।
उस समय बब्बर परिवार में कितना हंगामा हुआ होगा इसका केवल अंदाज़ा लगाया जा सकता है। उनकी शादी से बब्बर परिवार को एतराज था। पर जैसा की हर आईकॉनिक प्रेम कथा में होता है। उन्हें परिवार और प्यार में से किसी एक को चुनना था और उन्होंने प्यार को चुना।
आंधियों के डर से लोग अपने ही दीयों को अपनी ही फूंकों से बुझायेंगे... तो मोहब्बत की दुनिया में सिरफ अंधेरा रह जाएगा ~ फ़िल्म जीने नहीं दूंगा में राज का डायलॉग
वर्ष 1986 में दोनों ने एक दूसरे से शादी कर ली। पर उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक नहीं दिया था। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था "स्मिता के साथ मेरा रिश्ता नादिरा के साथ समस्याओं का परिणाम नहीं था - यह बस हो गया। नादिरा मेरी भावनाओं को समझने के लिए काफी परिपक्व थी।"
यह लव ट्रायंगल बहुत लंबा नहीं चला। यह प्रेम कहानी शायद अपने समय की सबसे छोटी प्रेम कहानी होगी। क्योंकि शादी को अभी एक साल भी नहीं हुआ था की दोनों बिछड़ गए। वह उस समय गर्भ से थी। डिलीवरी के समय समस्याएं आने के कारण बेटे प्रतीक को जन्म देते वक़्त उनकी मृत्यु हो गई।
अब के हम बिचड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिले ... जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले ~ फ़िल्म निकाह
स्मिता के जाने के बाद वह अपने परिवार और पत्नी नादिरा के साथ रहने लगे। फ़िल्मों में काम करना भी उन्होंने जारी रखा जो आज तक जारी है इसके अलावा वह फ़िलहाल कांग्रेस पार्टी के सदस्य भी है। अपनी टिप्पणियों की वजह से वह निरंतर आलोचना का शिकार होते रहे हैं । महंगाई पर टिप्पणी करते हुए जब उन्होंने कहा की मुंबई में 12 रुपये में भरपेट खाना खाया जा सकता है तो जनता आग बबूला हो गई थी। हालाँकि इसके अलावा भी ऐसे कई मौके आए जब वह विवादों का कारण बने है। पर फ़िर भी उन्होंने कभी राजनीति छोड़ी नहीं। अपने फ़िल्मी और राजनैतिक जीवन में वह जो कुछ भी हासिल कर पाए है वह उनके निरंतर प्रयासों के ही परिणाम है।