For smooth Ad free experience

गुरु तेग बहादुर जी शहीदी दिवस
साधनि हेति इति जिनि करी। सीसु दिया पर सी न उचरी। गुर नानक देव जी ने सिखी का उदय किया था। इसी गुरु परंपरा की श्रेणी में गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु कहलाए। गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा हेतु अपना जीवन बलिदान कर दिया। श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत इतिहास में अतुलनीय है। वह एक महान विचारक, योद्धा, पथिक व आध्यात्मिक व्यक्तित्व के धनी थे। जिन्होंने धर्म, मातृभूमि और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। गुरु तेग बहादुर जी को हिंद की चादर कहा जाता है, जिसका अर्थ है "भारत की ढाल"। वर्ष 1675 में, दिल्ली के चांदनी चौक पर मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा गुरु तेग बहादुर जी की हत्या की गई थी।
Source: the print.com चांदनी चौक में शहीद गुरु तेगबहादुर जी

हर साल मनाया जाता है

महान संत शिरोमणि, योद्धा व नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 21 अप्रैल 1621 में पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। इनके पिताजी का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था। तेग बहादुर जी की माँ का नाम माता नानकी था। तेग बहादुर जी के पिता सिखों के छठवें गुरु थे। श्री गुरु तेग बहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया। वर्ष 1632 में तेग बहादुर जी की शादी माता गुजरी से हुई। युद्धस्थल में हुए भीषण रक्तपात को देखकर श्री गुरु तेग बहादुर जी का बैरागी मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर मुड गया था। इसलिए साल 1644 में गुरु हरगोबिंद सिंह जी के कहने पर जब तेग बहादुर जी अपनी पत्नी और माँ के साथ बकाला नामक एक गॉंव में स्थानांतरित हुए, तो वहाँ पर 20 वर्ष तक साधना करते रहें। और वहीं पर उन्हें नौवें सिख गुरु के रूप में पहचाना गया। इन्होंने चकनानकी नामक स्थान स्थापित किया, जिसका बाद में 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद जी ने आनंदपुर साहिब के नाम से विस्तार किया।

उस समय हिंदुस्तान का शासक औरंगजेब था। उसके दरबार में एक विद्वान पंडित आकर हर रोज गीता श्लोक पढ़ता और औरंगजेब को उसका अर्थ सुनाता था। पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था। एक दिन पंडित बीमार पड़ गया और औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए पंडित ने अपने बेटे को भेज दिया, परन्तु उसे यह बताना भूल गया कि उसे किन-किन श्लोकों का अर्थ राजा के सामने नहीं करना। पंडित के बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया। औरंगजेब को किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा व सच्ची शिक्षाएँ सहन नहीं थीं। औरंगजेब ने तब कश्मीर के गवर्नर इफ्तिकार खां (जालिम खां) को कहा कि “सभी पंडितों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहा जाए नहीं तो, सभी को मौत के घाट उतारा जाएगा।“ इसके बाद पंडित कृपा राम के नेतृत्व में 500 कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर जी से मदद लेने पहुँच गया ।

औरंगजेब के अत्याचारों के बारे में जानने के बाद गुरु तेग बहादुर के पुत्र गोबिंद राय ने कहा कि, ”भारत के लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए उनके पिता से ज्यादा सक्षम कोई नहीं है।“ तब गुरु तेग बहादुर जी को एहसास हुआ कि उनका बेटा अब गुरु की गद्दी लेने के लिए तैयार है। इसलिए श्री गुरु तेग बहादुर जी ने पंडितों से कहा कि “आप जाकर जालिम खां से कह दें कि यदि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेगबहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे।“ यह बात औरंगजेब तक पहुंची तो वह क्रोधित हो गया और उसने हसन अब्दाल को गुरु तेग बहादुर जी को गिरफ्तार करने के लिए भेजा। जिसके बाद मुग़ल फ़ौज ने उनको आगरा से गिरफ्तार कर लिया और उनके साथ, उनके तीन शिष्यों भाई मतिदास, भाई दयाला जी तथा भाई सतिदास को भी बंदी बनाकर दिल्ली ले आये।

Source cultural.com आनंदपुर में गुरु तेगबहादुर जी के पास आये कश्मीरी पंडित

दिल्ली पहुँचने के बाद इस्लाम कबूल करने से मना करने पर, गुरुजी और उनके अनुयायियों को पाँच दिनों तक शारीरिक यातनाएँ दी गईं। उनके तीनों शिष्यों भाई मतिदास, भाई दयाला जी तथा भाई सतिदास को उनकी आँखों के सामने अलग-अलग तरीके से शहीद किया गया। अंत में, गुरु तेग बहादुर ने मुगल बादशाह औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद भी इस्लाम धर्म नहीं अपनाया और सभी जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया। गुरु तेग बहादुर के धैर्य और संयम से आग बबूला हुए औरंगजेब ने चांदनी चौक पर उनका शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और वह 24 नवंबर 1675 का दिन था, जब गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के नोएल किंग के शब्दों में, "गुरु तेग बहादुर की शहादत दुनिया में मानव अधिकारों के लिए पहली शहादत थी"।

उनके कटे शीश को भाई जैता ने गोबिंद राय को समर्पित कर दिया। और इसके बाद उनके शीश का आनंदपुर साहिब में दाह संस्कार किया गया। एक सिख भाई लक्खी जी गुरु जी का पवित्र धड़ अपने घर ले गए और किसी को इस बात की खबर न हो, इसलिए अपने मकान को आग लगा कर चोरी छिपे गुरु जी की पवित्र देह का संस्कार कर दिया। जहाँ आज गुरुद्वारा रकाबगंज है। और जहाँ उनका शीश गिरा था, वहाँ पर उनकी याद में उनके “शहीदी स्थल” पर गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है, जिसका नाम “शीशगंज साहिब” है। श्री गुरु तेग बहादुर ने श्री गुरु नानक देव जी व सभी गुरुओं के प्रकाश और दिव्यता को आगे बढ़ाते हुए गुरु परम्परा के अनुरूप ही धर्म व देश की रक्षा के लिए आवाज बुलंद की और बलिदान दिया। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने 17वीं शताब्दी में ही धर्म की आजादी के लिए शहादत देकर, प्रत्येक देशवासी के दिलो-दिमाग में निडरता से आजाद जीवन जीने का बीज बो दिया था।

गुरु तेज बहादुर जी धर्म प्रचार एवं लोगों के लिए सहज मार्ग हेतु प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों की यात्रा की। गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने मानव कल्याण हेतु, आध्यात्मिकता, धर्म और सच्चाई का ज्ञान लोगों को वितरित किया। इतना ही नहीं उन्होंने रूढ़ियों, अंधविश्वासों की आलोचना की और नए आदर्शों की स्थापना भी की। उन्होंने जन परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएं बनवाना आदि कार्य भी किए। गुरु तेग बहादुर जी ने बहुत सी रचनाएं लिखी, जो ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं।

गुरु तेग बहादुर जी ने कहा था, “कि दया ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। अगर दया नहीं होगी तो प्रकृति परोपकार कैसे करेंगी, माँ बच्चे को जन्म कैसे देगी और ईश्वर हम पर कृपा कैसे करेंगे। “ जब पुरातन युग में कंस, हिरण्यकश्यप, रावण, दुर्योधन सब निर्दयी और अधर्मी थें, तब भी मानव कल्याण हेतु भगवान धरती पर अवतरित हुए थें। और कलयुग में अत्याचारी शासकों से बचाने हेतु परमात्मा गुरु के रूप में आए। अध्यात्मिकता का मत है कि विधाता के हुकुम में ही उसके जीव को रहना है। तभी जब औरग़ज़ेब ने गुरु तेग बहादुर जी से कहा कि, “कोई चमत्कार दिखाओ”, तो उन्होंने मना कर दिया और बलिदान देना सहर्ष स्वीकार किया।“ आज हम उनके कृतज्ञ है, और हमेशा रहेंगे। कभी भी धर्म एक मजहब नहीं, धर्म एक कर्तव्य है। आदर्श जीवन का रास्ता है। आज हमारे लिए गुरु जी की शिक्षाएं, उनका त्याग व बलिदान एक धरोहर है, जिसे बचाना व सहेज कर रखना ही यहीं गुरु जी के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी। आज जरूरत है कि युवा पीढ़ी युग-पुरुष श्री गुरु तेग बहादुर जी के जीवन चरित्र व बलिदान से प्रेरणा लेकर, मानवीय एवं नैतिक मूल्यों के साथ जीवन में संस्कारों को ग्रहण कर आगे बढ़े, जिससे देश फिर से विश्व गुरु कहलाएँ।

तेग बहादर के चलत भयो जगत को सोक॥ है है है सब जग भयो जय जय जय सुरलोक॥’’

Source:Wikipedia.com गुरुद्वारा शीशगंज साहिब

0

Swati Grover Author
इतिहास मुझे हमेशा से ही रोमांचित करता है। स्कूल में यह मेरा मनपसंद विषय हुआ करता था। जब भी इतिहास के दरीचे में झांककर देखा तो लगा कि मानों हर कहानी मेरी तवज्जों चाहती है। तभी तो‌ एकांत में बैठी कहानी की तलाश कर लेती हूं । जो ज्यादा चुप है, उसे बात कर लेती हूं। जो कोलाहल मचा रही है, उसके शोर को समझ लेती हूं। कभी अतीत अछूता है, कभी अनकहा है। इसे भी किसी हमसफ़र की तलाश है। और मुझे खुशी है कि इसने मुझे चुना है।

Did you like this article?

Let us know if you have any suggestions/feedback regarding this article.

You might be interested in reading more from

Next Up
Know What Happened On
Your Birthday