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विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
एक लोक मान्यता के अनुसार स्वदेशी का अर्थ विदेशी नहीं होना न होकर देशज होना है। जिनका रहन-सहन, खान-पान, मेल-मिलाप, बातचीत, सोच-विचार तथा ज्यादातर हर मामले देशज होते हैं, उन व्यक्तियों की जड़े अपने देश के आसपास होती है। स्वदेशी 'तेरे-मेरे' का कोई संक्रीण दर्शन न होकर सारी दुनिया में स्थानीय समाज का कौशल है और जब एक व्यक्ति समाज के दूसरे व्यक्ति के साथ पूरे मन से मिलकर रहता है, तो सही अर्थों में वहीं स्वदेशी भावना कहलाती है।
विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस; source: world culture

विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

अगर एक देश के लोग गरिमामय जीवन जी रहे है, तो उसी देश में दूसरे लोगों को भी उतने ही सम्मान के साथ जीवन जीने का अवसर देना मानव कल्याण की धारणा को और विकसित करता है । तभी एक न्यायपूर्ण और स्वावलम्बी जीवन प्रणाली बनाने के लिए विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर साल 9 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में स्वदेशी आबादी के बारे में जागरूकता फैलाने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 दिसंबर 1994 को अपने संकल्प 49/214 में निर्णय लिया कि विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर साल 9 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन 1982 में, स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक हुई थीं।

विश्व के स्वदेशी लोगों के पहले अंतर्राष्ट्रीय दशक को 1995-2004 के दौरान मनाया गया । फ़िर 2004 में, विधानसभा ने 2005-2015 के बीच "ए डिकेड फॉर एक्शन एंड डिग्निटी" के विषय के साथ एक दूसरे अंतर्राष्ट्रीय दशक की घोषणा की । संयुक्त राष्ट्र के स्वदेशी लोगों के अधिकारों से सम्बंधित संदेश को फैलाने के लिए विभिन्न राष्ट्रों के लोगों को दिवस में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। गतिविधियों में स्वदेशी लोगों की सराहना और बेहतर समझ हासिल करने के लिए शैक्षिक मंच और कक्षा की गतिविधियां शामिल की जाती हैं।

हर साल, यूनेस्को इस दिवस को मनाने के लिए एक 'विषय' निर्धारित करता है। आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग (डीईएसए) इस वर्ष के विषय "संरक्षण में स्वदेशी महिलाओं की भूमिका और पारंपरिक ज्ञान का प्रसारण ” पर ध्यान केंद्रित करते हुए, स्वदेशी लोगों, सदस्य राज्यों, संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं, नागरिक, समाज और जनता सभी के साथ स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस के जश्न को मनाने की पूरी तैयारी में है।

इस वर्ष के विषय की पृष्ठभूमि के बारे में यही कहा जा सकता है कि, स्वदेशी महिलाएं स्वदेशी लोगों के समुदायों की रीढ़ हैं। वह पारंपरिक पुरखों के ज्ञान के संरक्षण और प्रसारण में महत्वपूर्ण भूमिका तो निभाती ही हैं, तथा उनके द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की देखभाल और वैज्ञानिक ज्ञान के रखवाले के रूप में उनकी भूमिका उनके समुदाय को जोड़कर रखती है। आज कई स्वदेशी महिलाएं भूमि और क्षेत्रों की रक्षा हेतु बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है और स्वदेशी लोगों के सामूहिक अधिकारों की दुनिया भर में वकालत भी कर रही हैं। ये सब महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद भी, स्वदेशी महिलाएँ अक्सर लिंग, वर्ग, जातीयता और सामाजिक आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव के स्तरों को पार करने से पीड़ित होती हैं। सदियों से उनके साधनों और पैतृक भूमि पर नियंत्रण के अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है। आत्मनिर्णय लेने और स्वशासन करने की उनकी इच्छा का भी हनन किया गया है।

वैसे कुछ समुदायों में निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्वदेशी महिलाओं द्वारा थोड़ी प्रगति की गई है। परन्तु, स्वदेशी महिलाओं को व्यापक रूप से कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है, और वे अक्सर भेदभाव और हिंसा की कई अभिव्यक्तियों का शिकार होती हैं।

अंतराष्ट्रीय समिति (सीईडीएडब्ल्यू) द्वारा स्वदेशी महिलाओं की उच्च स्तर पर गरीबी, शिक्षा और निरक्षरता के निम्न स्तर, स्वास्थ्य, बुनियादी स्वच्छता, ऋण और रोजगार सीमित होना, राजनीतिक जीवन में कम भागीदारी, घरेलू और यौन हिंसा की व्यापकता जैसे प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला जायेगा। महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई ठोस कदम उठाने की सम्भावना है।

आज स्वदेशी लोगों के पारंपरिक ज्ञान के महत्व को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। स्वदेशी लोगों ने आधुनिक विज्ञान के विकास से बहुत पहले, यह जानने के अपने तरीके कि "कैसे जीवित रहना है", विकसित किए हैं और जीवन के अर्थ, उद्देश्यों और मूल्यों के बारे में भी उनके अपने विचार हैं। स्वदेशी लोगों पर लिखी एक विशेष रिपोर्ट में यह बताया गया है कि "वैज्ञानिक ज्ञान" शब्द का उपयोग इस बात को रेखांकित करने के लिए भी किया जाता है कि पारंपरिक ज्ञान समकालीन( एक समय में होने वाला) और गतिशील है, या अन्य प्रकार के ज्ञान के समान मूल्यवान भी है।

दुनिया भर में ढेर सारे स्वदेशी लोग फैले हुए हैं। जिसमें से भारत में लगभग 8.6% जनजाति के लोग रहते हैं। फिलहाल,अभी तक 705 जातीय समूह हैं, जिन्हें औपचारिक रूप से पहचाना गया है। गोंड, भील, खासी और संथाल जैसे कई जातीय समूह भारत में निवास करते हैं।

एक स्वदेशी व्यक्ति का देह देश है, मन जगत के समान है। इसी सोच से दार्शनिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि प्रकट होती है। जगत का चिंतन और शारीरिक श्रम पर आधारित जीवन ही स्वदेशी की मूल आत्मा है। स्वदेशी अपनी जातीय भाषा के माध्यम से संवाद करते हुए स्थानीय लोगों से संपर्क स्थापित करते हैं । यह उत्सव मूल भूमि की महिमा को बताने के लिए भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। अब दुनिया के सभी हिस्सों में लोग इस दिन को पहचानते हैं। देशज आबादी अपनी मूल संस्कृति, कला, भाषा आदि को जानकर इस दिन को ख़ुशी से मनाती हैं। यह दिन लोगों को कई स्वदेशी भाषाओं से अवगत भी कराता है, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने की सार्थकता तभी सिद्ध होती दिखी, जब कई समूहों ने स्वदेशी लोगों और उनकी संस्कृति के विलुप्त होने के बचाव को सुनिश्चित किया।

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Shivani Sharma Author
ज़िंदगी की राह में मैं उन कहानियों की खोज़ में हूँ जिनमें ना कोई नकलीपन हो और ना ही कल्पना, अगर कुछ हो तो केवल हक्कीकत, ज़िंदगी के असल अनुभव और इतिहास के पन्नों मे छुपे अमर किस्से।

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