शून्य सहनशीलता दिवस
इस कुप्रथा के खिलाफ शून्यसहनशीलता दिवस मनाने की शुरुआत 6 फरवरी सन 2003 को हुई। वैसे तो महिलाओं के प्रति क्रूरता हमेशा से ही एक संवेदनशील विषय रहा है। सदियों से महिलाएं पुरूष प्रधान समाज में कई तरह की यातानाओं/प्रताड़नाओं का सामना करती रही है। इस संदर्भ में अब तक के इतिहास पर नज़र डाले तो हमें मालूम चलता है कि सामाजिक प्रताड़ना के सामने आवाज़ उठाने का साहस तो महिलाएं जैसे-तैसे कर लेती हैं। जब उनके साथ धर्म की आड़ में अमानवीय व्यवहार किया जाता है तो उसके खिलाफ आवाज़ उठाने का साहस समाज में किसी के पास नही होता।
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Women's Health. Image Credit: Unani medicines
महिला जननांग विकृति, जिसे आम भाषा में महिलाओं का ख़तना कहा जाता है, एक बहुत ही भयानक और अमानवीय कुप्रथा है। ये आज के अत्य-आधुनिक कहलाने वाले दौर में भी बहुत-से देशों बदस्तूर जारी है। इसकी मौजूदगी दुनिया-भर में बहुत से अफ्रीकी देशों के अलावा यूरोप, मध्य-पूर्व एशिया, और अमेरिकी देशों के साथ-साथ भारत में भी है। महिलाओं का ख़तना करने का चलन इस्लाम और यहूदी धर्म के लोगों में है। अफ्रीकी देशों में रहने वाले कुछ इसाई धर्म का पालन करने वाले भी इस कुप्रथा को अपनाए हुए हैं। ऐसा कहना अनुचित होगा कि इस धर्म के सभी लोग ख़तना की प्रथा निर्वाहन करते हैं, लेकिन इतना अवश्य है कि बहुत बड़ी संख्या में इसे एक धार्मिक अनुष्ठान मानकर इसका पालन करते हैं।
आज के दौर में ख़तना जैसी प्रथा का शिकार होने वाली अनगिनत नारियों के कहानियां, हमारे सभ्य कहे जाने वाले समाज पर एक जोरदार तमाचा है। यह कहानियां दुनिया के किसी भी कोने में मौजूद शख्स को भीतर झकझोरने की ताकत रखती है। महिलाओं का ख़तना करने के पीछे बहुत-ही बेतुके तर्क दिए जाते हैं। ख़तना करने के पीछे सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि इससे एक लड़की पवित्र हो जाती है और ताउम्र अपने पति के प्रति वफादार बनी रहती है, क्योकि ख़तना होने पर उसके शरीर से हराम की बोटी (महिला के शरीर के उस अंग को जिससे उसे शारीरिक संबंध बनाते समय आनंद की अनुभूति होती है, को काट दिया या सिल दिया जाता है।)
आखिर ख़तना होता क्या है और क्यों धार्मिक अनुष्ठान के नाम पर इस भयानक कुप्रथा को किया जाता है?
जब एक बच्ची, जिसके अंगों का विकास अभी पूरी तरह से भी नही हुआ होता, ख़़तना करने के लिए उसके गुप्तांग के बाहरी भाग, जिसे अंग्रेजी में "क्लिटर्स" और हिंदी भगशिश्रिका कहा जाता है, को काटा अथवा उसे सिल दिया जाता है। इस प्रक्रिया की सबसे भयानक बात यह है कि ऐसा करते समय बच्ची पूरे होश हवास में होती है। इस प्रक्रिया के दौरान वह असहनीय पीड़ा को बरदाश्त करती है। यह भयानक अनुभव सारी उम्र उसके लिए शारीरिक और मानसिक वेदना का कारण बन जाता है।
डॉक्टर्स के अनुसार जिन लड़कियों का खतना किया जाता है उनको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे पेशाब करने में बहुत तकलीफ होना, कई तरह के इन्फेक्शन का ख़तरा, सिस्ट यानी शरीर के अंदर गांठें बन जाना आदि। इतना ही नही, ऐसी लड़कियों को बच्चें को जन्म देते समय भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन सबसे परे दुनिया भर में ऐसे भी बहुत मामलें देखने को मिलते हैं, जिसमें ख़तना होने का दर्द न झेल पाने के कारण छोटी बच्चियों की मौत हो जाती है।
इतनी क्रूर प्रथा की खिलाफ शून्य सहनशीलता को दर्शाने के लिए 6 फरवरी को महिला जननांग विकृति के खिलाफ शून्य सहनशीलता दिवस अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य महिला जननांग विकृति जिसकी बहुत से देशों में कुप्रथा है, के खिलाफ आवाज उठाना, और इसे जड़ समाप्त करने के साथ-साथ जनसामान्य के बीच महिलाओं के प्रति सम्मान और स्नेह की भावना को बढ़ाना है।
यह बहुत ही दुख की बात है कि आज के अति आधुनिक युग में भी यह भयानक कुप्रथा बहुत से देशों में काफी बड़ें स्तर पर जारी है, खासकर अफ्रीका महादेश में। एक अनुमान के अनुसार सोमालिया जोकि "अफ्रीका" का एक देश है, में लगभग 98 प्रतिशत महिलाओं का ख़तना होता है।
जहां तक भारत की बात है तो मुंबई, मध्य प्रदेश जैसे इलाकों में बसने वाले शिया मुसलमानों का दाउदी बोहरा समुदाय इस कुप्रथा को पूरी शिद्दत से आज तक जारी रखें हुए है। यहां भी इस समुदाय बहुल इलाकों से आने वाली लड़कियों की ज़बानी बहुत-सी कहानियां सुनने को मिल जाती हैं, जिनमें उनके साथ हुई क्रूरता के बारे में पता चलता है। अफ़सोस की बात तो यह है कि इस कृत्य को करने में उनके अपनीं की पूरी सहमति होती है।
हालांकि, भारतीय संविधान को आधार बनाते हुए, न्यायालय में दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे महिलाओं के मौलिक अधिकारों हनन माना गया है। एक समुदाय विशेष से संबंध रखने के कारण, हमारे देश के संदर्भ में जो कदम इस दिशा में उठाए गए हैं, वे पर्याप्त नही माने जा सकते।
आइए महिला जननांग विकृति के खिलाफ शून्य सहनशीलता के अंर्तराष्ट्रीय दिवस के इतिहास और महत्व को जानते हैः
इस दिवस की शुरूआत नाइजिरिया की पूर्व राष्ट्रपति और महिला जननांग विकृति के खिलाफ शून्य सहनशीलता के अभियान की प्रवक्ता "स्टेला" आबेसांजो ने 6 फरवरी को 2003 को महिला जननांग विकृति के खिलाफ शून्य सहनशीलता दिवस मनाए जाने की घोषणा की। बाद में इसे संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भी स्वीकार किया गया। इस कुप्रथा का शिकार हुई लड़कियों और महिलाओं की मदद के लिए सन 2007 में संयुक्तराष्ट्र जन संख्या कोष (यूएनएफपीए) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीएसेफ) ने इसके खिलाफ अभियान चलाया था। इसी के साथ सन 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में एक प्रस्ताव पारित कर 6 फरवरी को इस दिवस को मनाए जाने की घोषणा की गई। समाज में इस कुप्रथा की बहुत बड़ें स्तर उपस्थिति और उससे उत्पन्न परिस्थितियों की गंभीरता को देखते हुए, सन 2030 तक इसे दुनिया भर से पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
यूनाइडेट नेशन ने इस प्रथा पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाते हुए, इसे मानवाधिकारों के खिलाफ बताया गया है। दुनिया में ऐसे बहुत से देश हैं, जहां पर महिलाओं के ख़तना पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के साथ ही ऐसा करने वालों पर भारी जुर्माना लगाए जाने का कानूनी नियम है। लेकिन इसके उन्नमूलन के लिए जो यह जो प्रयास अब तक किए गए हैं, वो पर्याप्त नही हैं। इस दिशा में और भी कदम उठाए जाना अनिवार्य हैं। यूनाइटेड नेशन के एक सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया भर में, हर साल करीब चार मिलियन लड़कियां इस कुप्रथा का शिकार होती हैं। अतः महिलाओं के प्रति होने वाले इस घिनौने कृत्य के प्रति शून्य सहनशीलता दिखाते हुए वैश्विक व भारतीय दोनों स्तरों पर कठोर कदम उठाए जाना बहुत ज़रूरी है।