राम प्रसाद बिस्मिल जंयती

भारतीय स्वंतत्रता की लड़ाई में राम प्रसाद बिस्मिल ने कुछ ऐसे क्रांतिकारी कार्य किए जिनसे उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दींं थीं। हर साल 11 जून को राम प्रसाद बिस्मिल की जंयती मनाई जाती है। इनके जीवन से जुड़ी कुछ संघर्षमय और वीरता की कहानियों ने इन्हें एक क्रांतिकारी के रूप में अमर बना दिया।
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राम प्रसाद बिस्मिल जंयती | स्त्रोत्: नवभारतटाइम्स

"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है..." इस पंक्ति को सुनकर आपके दिल और दिमाग़ में क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की छवि उभरकर सामने आ रही होगी। राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था। हर साल 11 जून को पूरे देश में इस महान क्रांतिकारी को याद किया जाता है, जो अंग्रेजों की हुकूमत के आगे कभी झुका नहीं। उन्हें फांसी का तख्ता मंज़ूर था, लेकिन उन्हें ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी बर्दाशत नहीं थी। क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल केवल अँग्रेज़ों को धूल चटाना ही नहीं जानते थे, बल्कि भारतीयों के भीतर बैठे आज़ादी के लोहे को अपनी शायरी, कविता के माध्यम से बखूबी जगाना भी जानते थे। वे एक कवि, शायर और साहित्यकार भी थे। उन्होंने अपनी कविता और शायरी के माध्यम से भारतीयों में क्रांति और राष्ट्रवाद की लौ को जगाया। राम प्रसाद बिस्मिल ने ग्यारह किताबें लिखी थीं, लेकिन दुखद बात ये है कि इन किताबों को ब्रिटिश हुकूमत ने ज़ब्त कर लिया।

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काकोरी क्रांतिकारी | स्त्रोत्: सत्याग्रह

मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे

बाकी न मैं रहूं, न मेरी आरज़ू रहे

जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे

तेरा ही ज़िक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे

-राम प्रसाद बिस्मिल

"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है" ग़ज़ल हमें रामप्रसाद बिस्मिल की याद दिलाती है। इस ग़ज़ल के रचयिता बिस्मिल अज़ीमाबादी हैं, मगर ये रामप्रसाद बिस्मिल के नाम से मशहूर है। चूंकि रामप्रसाद बिस्मिल ने इस ग़ज़ल के बाद कुछ शेर इसमें और जोड़कर इसे लोगों में जोश भरने और क्रांति पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया इसलिए ये इन्हीं के नाम से मशहूर हो गई। बिस्मिल अज़ीमाबादी के पोते मुनव्वर हसन ने भी इस ग़ज़ल को लेकर अपनी बात रखते हुए कहा था, कि उनके दादा की यह ग़ज़ल 1922 में ही 'सबाह' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

इतिहास में 'काकोरी कांड' ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ों को हिला देने वाली घटना थी, जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल की अहम भूमिका थी। इस कांड की शुरुआत असहयोग आंदोलन से हुई थी। 1922 में जब असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, तभी गोरखपुर जिले के चौरा-चौरी में एक घटना घटी। भड़के हुए कुछ आंदोलकारियों ने एक पुलिस थाने को घेरकर आग लगा दी, जिसमें करीबन 22 से 23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए। इस दुखद घटना से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने तुरंत असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। कहानी में सबसे बड़ा मोड़ तब आया, जब 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाली। काकोरी कांड का उद्देश्य था अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई को मज़बूती मिल सके। काकोरी ट्रेन डकैती में खजाना लूटने वाले क्रांतिकारी ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ के सदस्य थे, जिसकी  स्थापना अक्टूबर 1924 में भारत के कुछ क्रांतिकारियों द्वारा की गई थी। इनमें राम प्रसाद बिस्मिल भी शामिल थे।

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काकोरी कांड | स्त्रोत्: न्यूज नेशन

9 अगस्त 1925, करीबन रात 2 बजकर 42 मिनट पर सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को कुछ क्रांतिकारियों ने काकोरी में रोका और ट्रेन को लूटा। इस घटना को अंजाम देने में रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां के नाम सामने आए। इस घटना के बाद अंग्रेजी सरकार ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। ये मुकदमा क़रीब 10 महीने तक लखनऊ की अदालत में चला और रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सज़ा सुनाई गई। 9 दिसंबर 1927 को पं. रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई और उनके अंतिम शब्द थे**-  ‘मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं, विश्वानिदेव सवितुर्दुरितानि।’**

राम प्रसाद बिस्मिल की कवितांए आज भी युवाओं के भीतर राष्ट्रवाद की चिंगारी जलाने का काम करती हैं। उनकी स्वर्णिम कवितांए इतिहास की उन यादों को ताज़ा करती हैं जिनमें एक कवि और शायर ने ब्रिटिश हुकूमत की जड़े हिला दी थीं। राम प्रसाद बिस्मिल जी एक राष्ट्रवादी शायर, कवि, और क्रांतिकारी के रुप में हमेशा अमर रहेंगे। उनके जन्मदिवस पर हम उनकी वीरता और हिम्मत को सम्मानित करते हैं।

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