राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस

सन 1998 का वो दौर जब भारत के 11वें राष्ट्रपति पद पर आसीन रह चुके हमारे मिसाइल-मैन ‘डॉक्टर ए.पी.जे अब्दुल कलाम’ के नेतृत्व में भारत ने एक के बाद एक परमाणु बमों का परीक्षण कर तकनीकी क्षेत्र में अपनी ताकत का लोहा सारी दुनिया में मनवाया।
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राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस;  स्रोत: Freepik

किसी भी देश के लिए प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास उसके, विकसित देशों की श्रृखंला में एक महत्वपूर्ण जगह को सुनिश्चित करने की आवश्यक शर्त होती है। इस दिशा में भारत की बात करें तो हमने भी दशकों पहले से ही हमारे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास से चमकती तस्वीरों के साथ विश्व को रूबरू करवाया है। भारतीय उपमहाद्वीप में प्रौद्योगिकी अथवा यह भी कह सकते हैं कि प्रायोगिक विज्ञान की नींव बीसवीं सदी में प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जगदीश चन्द्र बोस ने रखी थी। सर जगदीश चन्द्र बोस को भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और पुरातत्व क्षेत्र का गहरा ज्ञान था। सर जगदीश चन्द्र बोस भारत के पहले वैज्ञानिक और शोधकर्ता थे जिन्होने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया। उन्होने वनस्पति के क्षेत्र में भी बहुत-सी महत्वपूर्ण खोज की हैं। यहाँ हम प्रायोगिक विज्ञान के क्षेत्र में मिली अभूतपूर्व सफलताओं को सम्मानित करने के लिए समर्पित दिवस की कहानी बताने का प्रयास कर रहे हैं।

11 मई का दिन भारत के लिए अपनी तकनीकी उपलब्धियों का जश्न मनाने का दिन है। सबसे पहले इस दिन को सन 1999 में पाँच परमाणु परीक्षणों की सफलता का जश्न मनाना शुरू किया गया। इस दिन का नामकरण तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा किया गया था। इस दिन को मनाए जाने की घोषणा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी विकास परिषद द्वारा की गई थी। इस दिवस को मनाने का प्रमुख उद्देश्य भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को अपने क्षेत्र में मिली अभूतपूर्व सफलता के लिए उनका आभार व्यक्त करने और उन्हें अपने क्षेत्र में और ज़्यादा अच्छा काम करने के लिए प्रोत्साहित करना था।

इतिहास के पन्नों में झांकने पर इस दिन से जुड़ी सबसे बड़ी घटना, पोखरण परीक्षण की याद सबसे पहले ताज़ा होती है। जिसने हर भारतीय के सीने को गर्व से चौड़ा कर दिया था। अगर हम इस दिन के महत्व को समझना चाहते हैं, तो हमें पहले सन 1998 में किए गए पोखरण परमाणु परीक्षण को समझना होगा। पाँच श्रृखंला में किए गए पोखरण परमाणु बम का परीक्षण भारतीय सेना द्वारा राजस्थान के पोखरण क्षेत्र में किया गया था।

इससे पहले भारत द्वारा परमाणु परीक्षण सबसे पहले स्माइलिंग बुधा कोड के नाम से 18 मई सन 1974 को किया गया था। इस बम को पोखरण टेस्ट रेंज के सेना बेस में भारतीय सेना द्वारा उस समय के कई महत्वपूर्ण अधिकारियों की निगरानी में लाक्षित किया गया था। अतः दूसरी बार भी परमाणु परीक्षण के लिए पोखरण का ही चुनाव किया गया, हालांकि पहले और दूसरे परमाणु परीक्षण में काफी अंतर था।

ये दिन परमाणु परीक्षण के कारण तो ख़ास है ही, साथ ही इस दिन घटित और कई महत्वपूर्ण घटनाओं ने इसके महत्व में चार चांद लगाए हैं। 11 मई के दिन ही  रक्षा शोध एवं विकास संगठन (डिफेंस रिसर्च एंड डिवलेंप्मेंट ऑर्गेनाइजेशन) ने त्रिशूल मिसाइल का सफल परीक्षण किया था। त्रिशूल जोकि शॉर्ट रेंज की मारक क्षमता वाली ऐसी मिसाइल है जो अपने लक्ष्य पर बहुत-ही फुर्ती के साथ हमला करती है।

इसके अलावा इसी दिन भारत के पहले एयरक्राफ्ट हंसा -3 ने भी आकाश में उड़ान भरी थी। इस एयरक्राफ्ट को नेशनल एयरोस्पेस लैब ने तैयार किया था। दो सीटर वाले इस विमान को पायलटों को प्रशिक्षण देने, हवा में फोटोग्राफी करने और पर्यावरण संबंधी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए बनाया गया था।

इसी दिन प्रतिवर्ष विज्ञान और तकनीकी के अंर्तगत काम करने वाली वैधानिक शाखा “भारतीय प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड” हमारे देश में हुए तकनीकी नवचारों को सम्मानित भी करता है। जिसके तहत बोर्ड विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में अपना अभूतपूर्व योगदान देने वाले चुनिंदा लोगों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित करता है।

हर साल इस दिवस को एक थीम पर फोकस कर के मनाया जाता है। पिछले वर्ष इस दिवस को सतत भविष्य के लिए विज्ञान और प्रोद्योगिकी की थीम के साथ मनाया गया था। इस वर्ष की थीम का ऐलान किया जाना अभी बाक़ी है।

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