विश्व बौद्धिक संपदा दिवस

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मानवी बौद्धिक क्षमता को समर्पित दिन  |  Image credits: Pixabay

प्रतिवर्ष 36 अप्रैल का दिन बौद्धिक संपदा को समर्पित किया गया है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य मानव द्वारा जो भी रचनात्मकता और नवीन खोज को साकार रूप दिया जाता है, उसके महत्व का बोध कराना है। इस तरह से बौद्धिक संपदा दिवस का उद्देश्य अविष्कारों, साहित्यिक और कलात्मक कार्य से संबंधित अधिकारों तथा पेटेंट, ट्रैडमार्क, औद्योगिक डिजाइन, कॉपीराइट की भूमिका के बारे जन-साधारण के बीच जागरूकता फैलाना है।

बौद्धिक संपदा दिवस को मनाने के लिए 26 अप्रैल का चुनाव करने के पीछे कारण यह था कि इस दिन सन् 1970 को विश्व बौद्धिक संपदा संगठन कन्वेंशन (संधि) समझौते के तहत दुनिया भर की बौद्धिक संपदा के संरक्षण को बढ़ावादेने के लिए आयोजित किया गया था। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन 1967 में  गठित हुआ था और यह एक स्वयं वित्त पोषित संस्था है। यह संयुक्त राष्ट्र की 15 विशेष ऐजेंसियों में से एक है। मौजूदा समय में, दुनिया के 193 देश इसके सदस्य हैं, और इसके तहत 26 अंर्तराष्ट्रीय संधियाँ आती हैं। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।

इस संगठन के बारे में चूंकि यह संयुक्त राष्ट्र की ऐजेंसी है, इसलिए संयुक्त राष्ट्र में शामिल देश इसके सदस्य बन सकते हैं, लेकिन इसमें शामिल होने को वे बाध्य नही हैं। फिलीस्तीन देश को इस संगठन में स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है। इस देश के अलावा, 281 गैर-सरकारी संगठनों, 47 अंर्त-सरकारी संगठन, 17 संयुक्त राष्ट्र संगठनों की प्रणालियों, और 10 आईपी संगठनों को विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की होने वाली बैठकों में आधिकारिक पर्यवेक्षक का स्थान प्राप्त है।

इन अधिकारों से संबंधित विश्व बौद्धिक संपदा संगठन द्वारा बहुत से अंतरराष्ट्रीय संधि बनाए गए हैं। जिनमें बहुत-सी दूसरी संधियों के साथ-साथ पेरिस संधि (1883)- औद्योगिक संपदा के संरक्षण से जुड़ा, जिसके तहत ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन आदि के अविष्कार के पेटेंट शामिल हैं; बर्ने संधि (1886)- साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के लिए, जिसके तहत उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक, गाने, ओपेरा, संगीत, ड्रॉइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला और वास्तुशिल्प से जुड़ें अधिकार सम्मिलित हैं; डब्लूपीपीटी संधि- दो तरह के लाभार्थियों, जो ख़ासतौर से डिजिटल वातावरण से जुड़ें होते हैं, जैसे गायक, कलाकार, संगीतकार आदि और फोनोग्राम्स के निर्माता से जुड़े होते हैं, से संबंधित है; बुडापेस्ट संधि- इस संधि का उद्देश्य सूक्ष्मजीवों के जमाव के पेटेंट के प्रयोजन को अंर्तराष्ट्रीय मान्यता देना है, मर्काकेश संधि- जिसके तहत किसी भी किताब को ब्रेल लिपि में छापे जाने को बौद्धिक संपदा का उल्लंघन नही माना जाना शामिल है।

भारत पहला देश है जो मराकेश संधि को अपनाता हुआ 1975 में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के सदस्य बना था।

वैसे तो बौद्धिक संपदा अधिकार दिवस मनाने का इतिहास उतना पुराना नहीं है, जितना कि इस संगठन का अस्तित्व लेकिन एक दिवस के तौर पर इसे मनाने का फैसला इस संगठन के सदस्यों द्वारा सन 2000 में लिया गया था। तब से प्रतिवर्ष इसे बौद्धिक संपदा अधिकार के प्रति लोगों को जागरूक करने हेतु मनाया जाने लगा। बौद्धिक संपदा अधिकार की धारणा यह है कि जो व्यक्ति अपनी बुद्धि के बल पर कुछ रचना या उत्पादन अथवा निर्माण करता है, उस पर सबसे पहला हक़ उसका होना चाहिए। इस अधिकार को या तो एक निश्चित समयावधि, निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र आदि के आधार पर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त, 12 मई 2016 को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार को भी मंजूरी दी गई है, जिसके तहत देश में बौद्धिक संपदा अधिकार को संरक्षण और प्रोत्साहन दिया जाता है। विश्व बौद्धिक संपदा दिवस को मनाए जाने की शुरूआत से ही प्रतिवर्ष इसे एक थीम के साथ मनाया जाता है। पिछले साल इसे बौद्धिक संपदा और बेहतर भविष्य के लिए नवीन खोज करते युवा" के साथ मनाया गया था। वर्ष 2021 में इसे अपने विचार को बाज़ार तक ले जाने की थीम के साथ मनाया गया। इस साल इस दिवस को महिला अविष्कारकों, रचनाकारों और उद्यमियों को प्रोत्साहित करने हेतु "आप कर सकती हो" की थीम के साथ मनाया जाएगा।

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