संवाद और विकास के लिए विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस
हमारी इस दुनिया की सबसे सुंदर बात यह है कि इसके भिन्न-भिन्न देशों, राज्यों, शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में पनपने और विकसित होने वाली सांस्कृतिक धरोहर इसे एक नया रूप देती है। सरसरी तौर पर देखा जाए तो एक संस्कृति का दूसरी से भिन्न होना दोनों में अलगाव का कारण बनता है, लेकिन जब दो अलग-अलग संस्कृतियाँ एक साथ आकर एक नई परंपरा को विकसित करती हैं, तो ये हमारे समाज को और भी अधिक मजबूती देती हैं। दुनिया भर के लोगों के बीच संवाद और विकास में सांस्कृतिक विविधता के महत्व से दुनिया को परिचित करवाना ही इस दिन का उद्देश्य है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपने द्वारा अपने प्रस्ताव में 21 मई को संवाद और विकास में विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस घोषित किया है। इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर विभिन्न देशों में जितनी भी संस्कृतियाँ फली-फूली और विकसित हुई हैं, उनका जश्न मनाना है। साथ ही दुनिया भर को यह भी समझाना है कि विश्व में शांति और सतत विकास के उद्देयों को पूरा करने में एक दूसरे के साथ लोगों के आपसी-मेलजोल और साथ मिलकर साकारात्मक परिवर्तन की अपनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सांस्कृतिक विविधता की बीच संवाद स्थापित करना बहुत ही आवश्यक कदम है। यूनेस्को द्वारा इस पहल के ज़रिए मुख्य तौर पर अपने चार लक्ष्यों को पूरा करने पर ज़ोर देना है।
- सांस्कृतिक वस्तुओं और सेवाओं के संतुलित आवागमन और कलाकारों व सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़ें पेशेवरों की गतिशीलता को बनाए रखना
- विश्व के सतत विकास के ढांचे से संस्कृति को जोड़ना
- संस्कृति के लिए शासन की स्थाई प्रणालियों का समर्थन करना
- मानवाधिकारों व मौलिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना
इसको सरल शब्दों में समझने के लिए हमें सन 2001 दो के उस दौर में जाना होगा जब अफ़गानिस्तान के बामियान में बुद्ध प्रतिमाओं, जोकि हजारों वर्ष पुरानी थी, को नष्ट किया गया। इस घटना के बाद, इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने सांस्कृतिक विविधता पर वैश्विक घोषणा की। इसके बाद दिसंबर 2002 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यू.एन.जी.ए.) ने अपने प्रस्ताव में 21 मई को संवाद और विकास के लिए सांस्कृतिक विविधता के लिए विश्व दिवस के तौर पर मनाए जाने की घोषणा की।
आखिर, इस दिवस की घोषणा क्यों की गई और वैश्विक विकास में इसका क्या महत्व है?
जैसा कि ऊपर बताया कि इस दिन हम न केवल दुनिया-भर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का जश्न मनाया जाता है, बल्कि दुनिया में शांति बनाए रखने और दीर्घकालीन विकास को सुनिश्चित करने में विभिन्न संस्कृतियों के बीच आपसी संवाद के महत्व से भी परिचित होने की दिशा में कदम बढ़ाने पर जोर देते हैं।
यह विभिन्न समुदायों के बीच सांस्कृतिक धरोहर को समझने, सम्मान देने और सद्भाव के साथ मिलकर रहने का तरीका जानने समझने के एक अवसर के तौर पर मनाया जाता है।
कोरोना काल ने लोगों के बीच शारीरिक दूरी को बढ़ाकर उसे एकल जीवन व्यतीत करने को विवश किया। लेकिन हम इस बात से बिल्कुल इंकार नही कर सकते कि मानव एक सामाजिक प्राणी है, उसे अपने निरंतर विकास के लिए दूसरी संस्कृतिक के साथ परस्पर मेल-मिलाप की आवश्यकता होती है। नवंबर 2001 में यूनेस्को द्वारा जो सांस्कृतिक विविधता पर वैश्विक घोषणा की गई, उसमें वैश्विकरण के जोखिम से दुनिया की सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करने के उपाय के तौर पर देखा गया था। इस दस्तावेज में सांस्कृतिक विविधता को मानवता की साझी धरोहर के रूप में परिभाषित किया गया था, और साथ ही उन कदमों के बारे में बताया गया था, जिनको इसके सदस्यों देशों द्वारा इस धरोहर को संरक्षित करने के लिए उठाए जा सकते हैं।
अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर उठाया गया जिसमे दुनिया की सास्कृतिक विविधता को वैश्विकरण से बचाने के लिए कदम उठाए गए थे। साथ ही, यह सांस्कृतिक विविधता और परस्पर-सांस्कृतिक संवाद को प्रोत्साहित करने वाला पहला उपकरण बनकर सामने आया था। विविधता को संरक्षित करने के लक्ष्य को साझा लक्ष्य मानकर इस दिशा में अंर्तराष्ट्रीय प्रयासों को प्रोत्साहित किया था।
वैसे अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में जो भी प्रयास किए जाते रहे हो, लेकिन भारत के संदर्भ में बात करें तो सांस्कृतिक विविधता प्राचीन काल से ही हमारी विशेषता रही है। दुनिया-भर में मात्र भारत ही एक ऐसा देश है, जिसकी धरती पर इतनी सारी संस्कृतियाँ एक साथ विकसित हुई और आज भी विकसित हो रही हैं। हमारे देश की सबसे बड़ी ख़ूब यह है कि हमने संस्कृतियों को अपनाया, लेकिन उनकी मौलिकता को कभी अस्वीकार नही किया। अतः इस दिशा में अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर किए जाने वाले प्रयासों में अपना योगदान देते हुए हम सभी को इस दिवस पर संवाद और विकास में सांस्कृतिक विविधता के महत्व को स्वीकारते हुए अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए। चूंकि हम भारतीय सदैव से विविधता में एकता के सिद्धांत के समर्थक और पालनकर्ता रहे हैं।