कुंडे हब्बा: दैवीय शक्तियों को गाली देने वाले जनजातीय त्यौहार की कहानी

हमारे देश में बहुत सारे त्यौहार ऐसे हैं जिसमें दैवीय शक्तियों की पवित्रता के साथ पूजा करने की मान्यता हैं। लेकिन जनाब आप सभी को जानकर थोड़ी हैरानी होगी कि हम भारत में रहते हैं, यहां आपको हैरान कर देने वाली कुछ ऐसी परम्पराओं,त्यौहारों और अनुष्ठान के बारें में पता चलेगा,जिसे सुनकर शायद आप भी सोचने पर मजबूर हो जाए कि क्या कोई त्यौहार ऐसा भी हो सकता हैं, जिसमें दैवीय शक्तियों को गाली देने की मान्यता हो?  कर्नाटक की कुरूबा जनजाति इस त्यौहार को बेहद अजीब ढंग से मनाती है जो दुनिया भर के लोगों के लिए आकर्षण का एक केंद्र बिंदु हैं।
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कुंडे हब्बा त्यौहार । इमेज स्रोत  : होम ग्राउन

हम सभी लोगों ने जीवन में ऐसे त्यौहार जरुर मनाए हैं,जो ईश्वर के प्रति आपकी आस्था को सुदृढ़  बनाए रखने में मदद करते हैं। हर त्यौहार के पीछे का मकसद ईश्वर के प्रति आस्था को बढ़ावा देना है और लोगों को बेहद खास संदेश देना हैं जिससे लोग जीवन में गलत कर्मों की अग्रसर न होकर,परमार्थ की राह को अपनाए। जैसे- दशहरा,दीवाली,होली आदि बहुत ही अच्छे उदाहरण है जो ईश्वरीय शक्ति के प्रति हमारी आस्था को मजबूत करते है। इस त्यौहार की खासियत ये भी रही है कि इसमें दैवीय शक्तियों का पवित्रता के साथ अनुष्ठान किया हैं। लेकिन एक त्यौहार ऐसा हैं जिसमें दैवीय शक्तियों का गालिय़ों  के साथ स्वागत किया जाता हैं। गालियां  भी इतनी बुरी दी जाती हैं कि आप अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि ये एक त्यौहार हैं।

भारत में अगर हम जनजातियां की जीवनशैली और परम्पराओं को देखें  तो दैवीय शक्तियों को पवित्रता की दृष्टि से देखा जाता है और घर की खुशहाली, सम्पन्नता और जंगलों की रक्षा हेतु भगवान की पूजा की जाती हैं। लेकिन कर्नाटक की कोडागु में रहने वाली कुरुबा जनजाति कुंडे हब्बा नामक वार्षिक त्यौहार मनाती हैं। इसके अलावा इस त्यौहार को थिथिमाथी, बालेले, बालेगुंडी, मालदारे इन गांवों में भी मनाया जाता हैं। कुंडे हब्बा ये इस जनजाति की स्थानीय भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है भगवान को गाली देने का त्यौहार। इस त्यौहार को 22 मई से लेकर 24 मई तक मनाया जाता है। यह कुरुबा द्वारा मनाया जाने वाला एक पैतृक अनुष्ठान है, जिसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा को इस त्यौहार में भद्दी गाली-गलौच दी जाती है, जिसे सुनकर आप लोगों को थोड़ा अटपटा लग सकता हैं।

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कुंडे हब्बा त्यौहार । इमेज स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

आखिर ऐसा क्यों हैं कि भगवान अयप्पा को इस त्यौहार के दिन भद्दी गालियां दी जाती हैं? इसके कहानी के पीछे कोई प्रमाण तो नहीं है, लेकिन इस कहानी का आधार लोगों की मान्यता को ही माना जा सकता हैं। इस कहानी में कहा जाता है कि भगवान अयप्पा एक बार इस जनजाति के किसी व्यक्ति को धोखा दे दिया  था। भगवान अयप्पा से बदला लेने के लिए आज भी इस जनजाति के लोग कुंडे हब्बा त्यौहार के दिन भगवान अयप्पा को गाली देते है। सुनकर थोड़ा अटपटा लग सकता है। लेकिन इस जनजाति के लोग पूरे जोर-शोर से भगवान अयप्पा को गाली देते है। ये लोग अपना भयावह रुप धारण करते है अपने पूरे शरीर को भद्दे रंगों से रंग देते हैं। अटपटे वस्त्रों को पहनते है जो बहुत गंदे होते है। कुंडे हब्बा के उत्सव में लोग सड़कों पर मार्च करते हैं। इसके अलावा नाचते हैं और गालियां  देते हैं।

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कुंडे हब्बा त्यौहार । स्रोत : होम ग्राउन

नाचते गाते और गालियां देते हुए ये लोगों के घरों से भिक्षा भी लेते हैं और फिर भगवान अयप्पा के मंदिर में पूजा करते है। इन्हें भिक्षा में मुर्गियां और अनाज दान में दिए जाते है, जिसे वो श्रद्धापूर्वक मंदिरों में चढ़ाया जाता है। लोगों की  इसके पीछे ये मान्यता भी हैं कि भगवान के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए भी उनसे  गाली-गलौच की जाती है। इसलिए साल में एक बार अपने भगवानों को गाली दी जाती है। फिर इसके बाद श्रद्धापूर्वक उनका नाम लेकर मंदिर में पूजा की जाती है। इस जुलूस में सिगरेट, शराब जैसे चीजों का इस्तेमाल भी किया जाता है। इसके अलावा अपने अश्लील कपड़े पहनकर अपनी अश्लील भावनाओं को भी उजागर किया जाता है। लेकिन ऐसा करने के पीछे इनकी नियत साफ होती है। इनकी मान्यता हैं कि यह अपने नकारात्मक विचारों को ज़ोर से व्यक्त करके स्वयं को साफ़ करने का एक कार्य है। भगवान के समक्ष ये नकारात्मक भावों को बाहर निकालकर भीतर से स्वयं  को शुद्ध रखने का प्रयास करते है।

अंतत: हमें यह संदेश मिलता हैं कि भले ही त्यौहार मनाने के तौर तरीके हमारे देश में हर जगह पर अलग-अलग देखने को मिलते है।  लेकिन उद्देश्य एक है, वो है साफ भावनात्मक नियत के साथ त्यौहार को मनाना। साफ नियत के साथ किया गया कार्य दैवीय शक्तियों की दृष्टि में कभी गलत नहीं होता।

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