रबारी जाति जिनसे जुड़ी हैं शिव-पार्वती की पौराणिक की कहानी

हमारे देश की जातियों का संबंध  भी पौराणिक कथाओं से भी रहा हैं। राजस्थान और गुजरात की रबारी जाति हैं जो इतिहास में अपनी वीरता के लिए भी जानी जाती हैं। इसके अलावा इनका संबंध  शिव-पार्वती की कहानी से भी है।आइए जानते है इनसे जुड़ा गौरवशाली इतिहास, जीवनशैली,परम्परा और पौराणिक कहानी,जिससे शायद ही आप परिचित हो।
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रबारी जाति। स्रोत : इंडिजिनियस पीपल लिटरेचर

आप जब भी किसी जाति का नाम सुनते होंगे तो आपके दिलों-दिमाग में शायद जंगल, मिट्टी और झोपड़ी से बने घर,चरवाहे,भेड़-बकरियां,अशिक्षित लोग ही घूमते होंगे। लेकिन क्या आप जानते है हमारे देश में ऐसी बहुत सारी जातियां है जिन्होंने इतिहास में अपनी वीरता का परिचय दिया हैं?  हमारे इतिहास में राजा-महाराजों की बगावत-ए जंग के किस्से या अपनी प्रजा की आन-बान शान के लिए सर काटने और कटवाने के किस्से भी आप लोगों ने बहुत सुने होंगे। लेकिन किसी जाति के वीरता के किस्से आप लोगों ने शायद ही बहुत कम सुने होंगे। यहां हम बात रबाई जाति के विषय में कर रहे हैं जिनसे शिव-पार्वती की पौराणिक कहानी भी जुड़ी हुई हैं जो आपका झुकाव आध्यात्मिकता की ओर भी बढ़ा सकती है। इनकी वीरता के किस्से बताए जाए तो मुहम्मद गजनवी के आक्रमण से इसका गहरा नाता है। जब भारत पर मुहम्मद गजनवी ने आक्रमण किया था तब उसका वीरता पूर्वक सामना करने वाले महाराजा हमीर देव का संदेश भारत के तमाम राजाओं को पहुँचाने वाला सांढणी सवार रेबारी ही था।

इस जाति को बहुत सारे नामों से जाना जाता हैं जैसे- रबारी, रेबारी,देवासी,मालधारी और देसाई। इस जाति की संख्या  उत्तर पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में पाई जाती हैं। ये गुजरात,राजस्थान,हरियाणा,पंजाब,मध्य प्रदेश में ज्यादा पाए जाते हैं जबकि इनकी कुछ संख्या  महाराष्ट्र,पश्चिमी उत्तर प्रदेश,हिमाचल प्रदेश,उत्तराखण्ड में पाई जाती हैं। ये लोग घुमंतु चरवाहे हैं। मौसम के हिसाब से अपना स्थान बदल लेते है। लेकिन इक्सवीं सदी आते-आते कुछ रबारी लोग ऐसे भी थे जिन्होंने शहरों की ओर अपना रुख मोड़ा। कुछ रबारी जाति के लोग ऐसे भी थे जिन्होंने व्यवसाय, राजनीति, कला और साहित्य के क्षेत्र में कुछ कार्य किया। इतिहासकारों का मानना हैं कि ये समूह क्षत्रिय जाति से संबधित हैं। लेकिन कुछ का मानना हैं कि मोहनजोदाड़ों और हड़प्पा जैसे प्राचीनतम नगरों का संबध इनके पूर्वजों से हैं। इनकी उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में थोड़ा मतभेद है।

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रबारी घुमंतु। स्रोत : इंडिजिनियस पीपल लिटरेचर

लेकिन ये लोग अपनी उत्पत्ति शिव-पार्वती से मानते हैं। इसे लेकर एक दंत कथा प्रचलित है जिसे इस जाति के लोग भी मानते हैं। उनका मानना है कि भगवान शिव और माँ पार्वती ने उन्हें ऊंट की रखवाली करने के लिए बनाया है। भगवान शिव और पार्वती जब कैलास पर्वत पर थे, तो मां पार्वती ने अकेलापन महसूस किया, इस अकेलेपन को दूर करने के लिए उन्होंने वहां पड़ी गीली मिट्टी की कुछ आकृति बनाई। वह मिट्टी की आकृति ऊंट जैसी थी। मां पार्वती को यह आकृति अत्यधिक  आकर्षक लगी।जब भगवान शिव अपनी तपस्या से उठे तो उनकी नजर माँ पार्वती पर पड़ी। माँ पार्वती आग्रह किया कि हे प्रभु! इस मिट्टी में प्राण फूंककर इसे जीवित करें। भगवान शिव ने अपनी भस्म से ऊंट की आकृति में जान डाल दी। कहा जाता है कि धरती पर तब से ऊंट का अस्तित्व आया। भगवान शिव देवों के देव महादेव है भले ही वह ध्यान में मग्न रहते हो लेकिन उन्हें संसार के  हर व्यक्ति का ध्यान रहता हैं। भगवान शिव ने ऊंट की रखवाली करने हेतु अपने हाथ की त्वचा से एक मनुष्य निर्माण किया। भगवान शिव के हाथों की त्वचा से बने होने के  कारण ये रबारी क्षत्रिय कहलाये। ये भी कहा जाता है भगवान शिव ने जिस मनुष्य को जीवित किया था,वो धरती का पहला मनुष्य सामड रबारी था। आज भी रबारी समाज में  सामड नाम की एक गोत्र है जिसे प्रथम गोत्र होने का ऊंच दर्जा प्राप्त है। रबारी जाति के लोगों का मानना है कि भगवान शिव व मां पार्वती ने ऊंट बनाया उस समय ऊंट के पांच पैर होते थे। जिससे ऊंट को चलने- फिरने ओर दौड़ने में काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता था। एक दिन सामड रबारी ने ऊंट की व्यथा भगवान शिव को बताई। जिससे भगवान शिव ने ऊंट के पांचवे पैर को अपने हाथ से ऊपर की ओर धकेल दिया जिससे ऊंट के ऊपर की ओर कूबड़ उभर आया। इसके बाद ऊंट चलने फिरने लगा और उसकी स्थिति में सुधार आया।

रबारी जाति से जुड़ी हुई एक और कहानी हैं जिसका संबंध  सामड रबारी की शादी से है। सामड रबारी रोजाना ऊंट चराने के लिए हिमालय के जंगल मे जाता था, एक दिन उसकी नजर झील में नहा रही स्वर्ग की अप्सराओं पर पड़ी। सामड जिज्ञासा के कारण उनके कपड़े उठा लिया करता था, इससे नाराज होकर अप्सराओं ने सामड रबारी की शिकायत भगवान शिव- पार्वती से की। मां पार्वती ने कपड़े लौटाने पर एक शर्त रखी कि आप में से जो अप्सरा सामड रबारी से शादी करेगी, उसके वस्त्र वापिस कर दिए जाएंगे। उन स्वर्ग की अप्सराओं में से राय नाम की अप्सरा शादी करने को राजी हुई। राय अप्सरा से शादी करने के कारण आगे चलकर उनकी संतानों को कालांतर में रायका के नाम से जानने लगे। सामड रबारी और राय अप्सरा की संतानें ही रबारी कहलाई।

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रबारी जनजाति की महिलांए काले वस्त्र में। स्रोत : इंडिजिनियस पीपल लिटरेचर

विवाह संबधी रीति-रिवाजों की बात की जाए तो यहां आज भी बाल-विवाह प्रचलित हैं। विधवा को पुन: विवाह करने की अनुमति है। कभी-कभी रबारी महिलाएं काली शर्ट पहनती हैं। उनके काले पहनने के बारे में एक दिलचस्प मिथक है। कई साल पहले राजस्थान का जैसलमेर रबारियों का महत्वपूर्ण गढ़ हुआ करता था।  एक मुस्लिम राजा को एक युवा रबारी लड़की से प्यार हो गया। हालाँकि, उनके प्रस्ताव को समुदाय ने अस्वीकार कर दिया था। राजा ने क्रोधित होकर उन सभी को मार डालने की धमकी दी। डर के मारे रबारियों ने एक मुस्लिम व्यक्ति की मदद से आधी रात में अपना डेरा छोड़   दिया। लेकिन रबारियों को भागने में मदद करने वाले मुस्लिम व्यक्ति को राजा ने मार डाला। कहा जाता है कि तभी से उनकी मृत्यु का शोक मनाने के लिए रबारी महिलाएं काला वस्त्र पहनने लगीं।

इस जाति से जुड़ी मान्यताएं  और कहानियां हमें यहीं संदेश देती हैं कि हम भारत के किसी भी कोने में झाँक कर देख ले जातियां अपने इतिहास, अस्तित्व और रीति-रिवाजों के पीछे पौराणिक कहानियों का हवाला देती हैं। भले ही उसके पीछे कोई तर्क न हो,लेकिन पूर्वजों से जुड़ी हुई मान्यताएं  और दैवीय आस्था जुड़ी हुई होती  हैं।

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