सरपम थुल्लल: सांपों के नृत्य की कहानी

अगर आप केरल के किसी भी गांव,कस्बे और शहर में चले जाए,वहां आपको लोगों के मन में सांपों के लिए एक असीमित भक्तिमय प्रेम नज़र आएगा। वहां के घरों और मंदिरों में सांपों के प्रति भक्ति की गूंज आपको हमेशा सुनाई देगी। ऐसे ही एक दैवीय नृत्य की कहानी आपको बताने वाले हैं जिसमें सांपों के देवता यानी नाग देवता की पूजा करने के लिए एक भव्य नृत्य सरपम थुल्लल किया जाता है।
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सरपम थुल्लल। इमेज स्रोत : नर्तकी

आप सभी को ये लगता होगा कि सांपों को हमारे देश में केवल नाग पंचमी के दिन ही पूजा जाता होगा,लेकिन यहां आप सभी गलत हैं। हमारे भारत में केरल राज्य के हर कस्बे,गली और शहर में सांपों को लेकर जो आस्था हैं, शायद वो आपको कहीं देखने को नहीं मिलेगी। आपके घरों में जिस तरह भगवान शिव-पार्वती, राधा-कृष्ण,भगवान राम-सीता की भक्ति की गूंज सुनाई देती हैं। वैसे ही केरल के आम घरों में सांपों के राजा यानी नाग देवता के भक्ति की गूंज सुनाई देती है। नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए एक दैवीय नृत्य सरपम थुल्लल यानी सांपों का नृत्य भक्तों द्वारा किया जाता हैं। दक्षिण भारत के किसी भी कोने में अगर आप जाएंगे तो आपको बहुत से दैवीय अनुष्ठान देखने को मिलेंगे जो आपको हैरानी में डाल सकते हैं जैसे- भूता-कोला, पदायनी। ये भी एक ऐसा ही दैवीय अनुष्ठान हैं जिसमें विशेष भक्तजन ही इन दैवीय अनुष्ठानों को कर सकते हैं और एक नृत्य प्रस्तुत किया जाता है जिसके माध्यम से अदृश्य दैवीय शक्तियों को प्रसन्न किया जाता हैं। वैसे ही सरपम थुल्लल में भी विशेष भक्तजनों द्वारा नाग देवता को प्रसन्न करने हेतु एक नृत्य किया जाता हैं।

पौराणिक कथाओं में चाहे हम महाभारत देख लें या रामायण हम सांपों के अस्तित्व को नहीं नकार सकते। इसके अलावा भगवान शिव के गले में विराजमान वासुकी नाग और भगवान विष्णु की शैय्या में विराजमान शेषनाग का भी हमारे देश में आध्यात्मिक महत्व रहा हैं। नाग देवता की पूजा का महत्व हमारे देश में प्राचीन काल से अब तक रहा हैं। हमारे देश में सांपों को एक जीव की तरह नहीं बल्कि एक दैवीय शक्ति के रुप में पूजा जाता हैं। लेकिन जब बात केरल की आ जाए तो आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां के नायर जाति के लोग नागवंशी क्षत्रिय होने का दावा करते हैं। इन बातों में कितनी  सच्चाई हैं ये तो कहा नहीं जा सकता है, लेकिन इनका संबंध  लोगों की पौराणिक मान्यताओं और आस्था से जुड़ा हुआ हैं। शायद यही  कारण हैं कि यहां लोग नाग देवता में अपनी अटूट आस्था रखते है।

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सरपम थुल्लल। इमेज स्रोत  :  फस्ट पोस्ट

सरपम थुल्लल की बात की जाए तो ये एक वार्षिक अनुष्ठान है जो केरल में रहने वाले परिवारों द्वारा आयोजित किया जाता है। सरपम थुल्लल किसी इच्छा को पूरा करने या इच्छा  पूरे होने के बाद भी किया जाता है। विवाहित जोड़े अगर संतान प्राप्ति हेतु भी इस दैवीय अनुष्ठान को करते है इसके अलावा अगर किसी की कुंडली में कोई दोष हो,तो इस दोष को दूर करने के लिए भी इस अनुष्ठान को किया जाता है। इस अनुष्ठान की तिथि मंदिर के पुजारी द्वारा तय की जाती है। यह अनुष्ठान आमतौर पर पुल्लुवर समुदाय के सदस्यों द्वारा किया जाता है। इस समुदाय में जो पुरुष अनुष्ठान के कार्य जैसे- मंत्र उच्चारण, नृत्य, संगीत बजाने का कार्य करते है उन्हें पुल्लुवन कहा जाता है और जो महिलांए नृत्य और पारम्परिक कार्य करती हैं उन्हें पुल्लुवती के नाम से जाना जाता है। पुल्लुवन और पुल्लुवती प्रार्थना और प्रसाद सहित कई अनोखे अनुष्ठान करते हैं।

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सरपम थुल्लल। इमेज स्रोत : फस्ट पोस्ट

इस अनुष्ठान को मंदिर में ही आयोजित किया जाता है, जिसकी शुरूआत फर्श पर रंगोली बनाने से होती है इसमें रंगोली में नाग देवता का चित्रण बनाया जाता है। इस अनुष्ठान में एक पूजा हेतु एक मंडप तैयार किया जाता है इस मंडप को  चारों ओर  से नारियल के पत्तों से सजा दिया जाता हैं। इस पूजा के मंडप पर नाग की आकृति की रंगोली तैयार की जाती है। इस अनुष्ठान में भी भूता-कोला जैसी प्रक्रिया होती है जिसे आप लोगों ने कांतारा मूवी में जरुर देखा होगा। इसमें महिला नृतकों का चुनाव मंदिर के पुजारी द्वारा किया जाता है या तो उन घरों की महिलाओं को नृतकों के रुप में चुना जाता है जिनके पूर्वजों ने इस अनुष्ठान को पीढ़ी- दर -पीढ़ी किया हो। इस रंगोली के आगे महिला नृतकों को बैठाया जाता है। जब इस पूजा अनुष्ठान में मंत्र उच्चारण और जोर-शोर से संगीत बजाया जाता है तो उस वक्त महिला और पुरूषों नृतकों को ऐसा प्रतीत है मानो! उनके भीतर कोई दैवीय शक्ति का प्रवेश हो रहा हो,ये लोग नाचते हुए रंगोली के भीतर तक प्रवेश कर जाते है। नृत्य करते समय ये अपने पंसदीदा भक्त को नारियल भी दे देते है, जिसे भक्त नाग देवता का आशीर्वाद मानते है।

इस अनुष्ठान में नृतक किसी भी तरह का कोई अभ्यास नहीं करते है लोगों का मानना हैं कि ये नृत्य उनसे दैवीय शक्तियां करा रही है। इस अनुष्ठान में नृतक बुरी तरह लोट-पोट भी होते है लेकिन उनको किसी भी तरह की चोट का आभास नहीं होता है। सरपम थुल्लल का अंत तब होता है जब नृतक मंदिर के आस-पास स्थापित तालाब पर स्वयं  भागकर डुबकी लगाते है और अनुष्ठान वाले मंडप पर वापस आ जाते है। अंतत: हमें यहीं संदेश मिलता है कि भारत में बहुत से ऐसे दैवीय अनुष्ठान देखने को मिलते है जिसका आधार सिर्फ आस्था है। कोई भी व्यक्ति इस बात की वैज्ञानिक जांच नहीं कर सकता कि इस अनुष्ठान के समय नृतकों के भीतर कौन-सी ऊर्जा का संचार होता है? जिसकी वजह से इन्हें चोट का आभास तक महसूस नहीं होता है। इन मान्यताओं का आधार सिर्फ ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति है।

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